उत्तर प्रदेश को भारत का "हिंदी Heart Land" कहा जाता है --- और यह उपाधि केवल इसकी भाषा-जनसंख्या के कारण नहीं, बल्कि इसकी गहन सांस्कृतिक, साहित्यिक और लोक परंपरा के कारण भी है। सूरदास, तुलसीदास, कबीर, रैदास जैसे संतों से लेकर प्रेमचंद, निराला और महादेवी वर्मा जैसे साहित्यकारों ने इस भूमि को संवेदना, चेतना और रचनात्मकता का केंद्र बनाया।
यही वह भूमि है, जिसके रचनात्मक योगदान और मंचीय कल्पनाशीलता ने भारतीय सिनेमा को गहराई से प्रभावित किया है। यही वह भूमि है, जहाँ काशी की गलियों से निकले संवाद, प्रयाग के संगम से उपजी कथाएँ और लखनऊ की तहज़ीब ने बॉलीवुड को भावनात्मक समृद्धि दी। यही वह भूमि है, जहाँ तुलसी के दोहों की लय और कबीर के दोहों ने सिनेमाई पटकथाओं को नया आयाम दिया।
यही वह भूमि है, जिसने भारत की सांस्कृतिक पहचान को पीढ़ियों तक संवारा है। यही वह भूमि है, जहाँ नौटंकी के मंच ने अभिनय की बारीकियाँ सिखाईं, रामलीला ने दृश्य-निर्माण का हुनर दिया और स्वांग ने चरित्र-चित्रण की कला विकसित की। यही वह भूमि है, जहाँ भारतेन्दु नाट्य परंपरा ने संवाद लेखन और अवधी दरबार ने पारंपरिक वस्त्र-आभूषणों के माध्यम से सिनेमाई दृश्य-शिल्प को समृद्ध किया।
यही वह भूमि है, जिसने तकनीकी कौशल की अद्वितीय विरासत सृजित की। यही वह भूमि है, जहाँ मंच सज्जाकारों ने सेट डिज़ाइन, पारंपरिक प्रकाश विशेषज्ञों ने लाइटिंग तकनीक और रंग-सज्जाकारों ने विजुअल एस्थेटिक्स की नींव रखी। यही वह भूमि है, जहाँ राग-नाट्य के संयोजन ने संगीत निर्देशन और लोक-नाट्य के तकनीकी संचालन ने सिनेमाई प्रोडक्शन को नई दिशा दी - एक ऐसी विरासत जो आज भी यश चोपड़ा के दृश्य-संयोजन से लेकर सत्यजित राय के कैमरा एंगल्स तक में दिखाई देती है।
भारतीय सिनेमा में उत्तर प्रदेश की झलक :
इसी परंपरा की निरंतरता में उत्तर प्रदेश ने भारतीय फिल्म उद्योग को भी असाधारण प्रतिभाएं दी हैं। आज बॉलीवुड और राष्ट्रीय सिनेमा में कार्यरत लगभग 60% से ज्यादा कलाकार, लेखक, निर्देशक, तकनीशियन और अन्य प्रोफेशनल्स --- किसी न किसी रूप में उत्तर प्रदेश और बिहार से ताल्लुक रखते हैं।
अमिताभ बच्चन, मनोज बाजपेयी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, पंकज त्रिपाठी, राजपाल यादव, अनुराग कश्यप, तिग्मांशु धूलिया, रवि किशन जैसे नाम न केवल लोकप्रियता के प्रतीक हैं, बल्कि उन्होंने उत्तर भारत की बोली, ज़मीन और संवेदना को सिनेमा जगत में आयाम दिया है।
प्रतिभा पलायन : एक गंभीर विसंगति-
लेकिन इस सांस्कृतिक गौरव के पीछे एक गंभीर विसंगति भी है ---
इन कलाकारों और प्रोफेशनल्स की प्रेरणा भले ही यूपी की गलियों में उपजी हो, लेकिन अवसरों के अभाव के कारण उनकी रचनात्मक ऊर्जा, आय और निवेश दूसरे राज्यों को समर्पित हो जाते हैं।
ये मुंबई या अन्य महानगरों में बसते हैं,
वहीं खर्च करते हैं
वहीं प्रॉपर्टी खरीदते हैं,
वहीं टैक्स जमा करते हैं,
और वहीं की आर्थिक गतिविधियों और रोजगार चक्र का हिस्सा बन जाते हैं।
फलस्वरूप, उत्तर प्रदेश --- जो इनके संस्कार और संघर्ष की भूमि है --- मात्र एक 'प्रतिभा पलायन ज़ोन' बनकर रह गया है।
अब प्रश्न यह है --- : क्या उत्तर प्रदेश मात्र प्रतिभाओं का उद्गम स्थल बना रहेगा, या अपनी रचनात्मक ऊर्जा को यहीं संरक्षित और समृद्ध कर, विकास का गतिशील इंजन बन पाएगा?
फिल्म बंधु : उत्तर प्रदेश में सिनेमा को प्रोत्साहन देने की पहल -
1998 के आसपास, उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने राज्य में पर्यटन और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से "फिल्म बंधु" नामक एक इकाई की पहल की।
समय के साथ प्रदेश में फिल्म निर्माण की संभावनाएँ स्पष्ट होती गईं। इन संभावनाओं का आकलन करते हुए, और स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन व सांस्कृतिक विविधता को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने के उद्देश्य से, वर्ष 2001 की संशोधित फिल्म नीति के अंतर्गत 'फिल्म बंधु उ0प्र0' को सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के अधीन एक समर्पित विभाग के रूप में पुनर्गठित किया गया।
जनवरी 2023 में ''फिल्म बंधु' को एक पूर्ण नोडल एजेंसी के रूप में अधिस्थापित किया गया। वर्तमान में यह संस्था फिल्म नीतियों के क्रियान्वयन, शूटिंग अनुमतियों, सब्सिडी वितरण और राज्य में सिने-इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के साथ-साथ निवेशकों और फिल्म निर्माताओं के लिए एक 'सिंगल विंडो' प्लेटफ़ॉर्म की भूमिका निभा रही है।
घोषणाएं बनाम हकीकत -
2000 - 2025 के बीच समय-समय पर उत्तर प्रदेश में फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने के लिए घोषणाएं होती रही हैं। विभिन्न सरकारों के कार्यकाल में कई चर्चित फिल्म अभिनेताओं, निर्देशकों और निर्माताओं को मंच पर बुलाकर इन्वेस्टमेंट मीटिंग्स और लोकेशन प्रमोशन कार्यक्रम आयोजित किए गए थे, लेकिन ज़्यादातर प्रयास केवल राजनीतिक प्रचार या औपचारिक घोषणाओं तक ही सीमित रह गए।
उत्तर प्रदेश की फिल्म नीति: दो दशकों की घोषणाओं का विश्लेषण:
2000 के बाद से उत्तर प्रदेश सरकार ने फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ बनाईं, लेकिन नतीजा यह हुआ कि उत्तर प्रदेश आज भी भारत के फिल्म उद्योग के क्षेत्र में सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है। यहाँ प्रमुख योजनाओं और उनके नकारात्मक प्रभावों का विश्लेषण है:
1. 2005: नोएडा फिल्म सिटी की शुरुआत
लक्ष्य:
मुंबई(बॉलीवुड) के समकक्ष फ़िल्म उद्योग के लिए बुनियादी ढाँचा बनाना।
बड़े प्रोडक्शन हाउसेस को आकर्षित करना।
हकीकत:
20 साल बाद भी प्रोजेक्ट अधर में --
2. 2012: यूपी फिल्म डेवलपमेंट काउंसिल (UPFDC)
लक्ष्य:
स्थानीय फिल्म निर्माताओं को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
क्षेत्रीय सिनेमा को बढ़ावा देना।
हकीकत:
फिल्म बंधु के तहत फंडिंग की व्यवस्था की गई, लेकिन इसका प्रभाव सीमित रहा।
जटिल प्रक्रियाओं ने स्थानीय निर्माताओं को सहायता प्राप्त करने में बाधा डाली।
नतीजा:
कई फिल्म निर्माता और तकनीशियन मुंबई की ओर पलायन कर गए।
क्षेत्रीय सिनेमा को अपेक्षित प्रोत्साहन नहीं मिला।
3. 2021: नई यूपी फिल्म पॉलिसी
लक्ष्य:
₹2.5 करोड़ तक की सब्सिडी।
25% अतिरिक्त छूट यदि फिल्म में यूपी की संस्कृति दिखाई जाए।
हकीकत:
केवल 12 फिल्मों को सब्सिडी मिली (ज्यादातर बड़े बैनर वालों को)।
छोटे निर्देशकों को फंड नहीं मिला -- कागजी कार्रवाई जटिल थी।
नतीजा:
स्थानीय टैलेंट को कोई फायदा नहीं हुआ, पलायन जारी रहा।
4. 2022: यूपी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल
लक्ष्य:
ग्लोबल इवेंट करके यूपी को फिल्म हब बनाना।
हकीकत:
कम भागीदारी -- बॉलीवुड/ओटीटी कंपनियों ने ध्यान नहीं दिया।
कोई निवेश नहीं आया -- केवल सरकारी खर्च पर चला आयोजन।
नतीजा:
यूपी की फिल्म इंडस्ट्री को कोई ग्लोबल एक्सपोजर नहीं मिला।
🎥 जब यूपी ने बॉलीवुड को बुलाया: 2015 के फिल्मी वादों की कहानी-
📅 कार्यक्रम का विवरण
📅 कार्यक्रम:
वर्ष: 2015
आयोजन: उत्तर प्रदेश फिल्म नीति प्रमोशन कार्यक्रम, लखनऊ
उद्देश्य: यूपी को शूटिंग और प्रोडक्शन के लिए उपयुक्त गंतव्य बनाना
🎤 किसने क्या कहा था?
सुभाष घई:
"उत्तर प्रदेश की संस्कृति और कहानियों में फिल्मों के लिए जो गहराई है, वह कहीं और नहीं। अगर सरकार सपोर्ट करे तो हम यहां फिल्म संस्थान और स्टूडियो ला सकते हैं।"
बोनी कपूर:
"यहां हम रामायण, महाभारत और गांव की कहानियों को आधुनिक सिनेमा में रूपांतरित कर सकते हैं。"
रवि किशन:
"मैं यूपी से हूं, और चाहता हूं कि मेरी माटी में ही फिल्में बनें।"
योजनाएँ और उनके परिणाम:
वित्तीय हानि: योजनाओं में बड़े निवेश किए गए, विशेष रूप से नोएडा फिल्म सिटी के लिए, लेकिन ठोस परिणाम नहीं।
प्रतिभा पलायन: उत्तर प्रदेश के लेखक, निर्देशक, टेकनीशियन, संगीतकार, और गायक जैसे प्रतिभाशाली पेशेवर मुंबई और दक्षिण भारत की ओर पलायन कर गए, क्योंकि यूपी में स्थानीय अवसरों नहीं विकसित हुए।
छवि को चुनौती: उत्तर प्रदेश छवि बनाने में असफल रहा ।
फिल्म उद्योग व रोजगार सृजन नगण्य : उत्तर प्रदेश में फिल्म उद्योग व रोजगार सृजन नगण्य रहा।
🎬 सब्सिडी योजना और उसके प्रतिकूल प्रभाव: एक विश्लेषण
व्यवहारिक धरातल पर यह योजना अपेक्षित परिणाम देने में असफल रही है। इसकी संरचना में ऐसी कई नीतिगत खामियाँ हैं, जिनके कारण यह योजना लक्ष्य से भटककर एक प्रचार-केंद्रित अभियान में बदल गई है, जिसके कारण राज्य को आर्थिक तथा सामाजिक दोनों स्तरों पर नुकसान झेलना पड़ रहा है।
1️⃣ आर्थिक दृष्टिकोण से नुकसान-
🧾 राजकोषीय 'लीकेज' और असंतुलित निवेश
अधिकांश प्रोडक्शन यूनिट्स अपना पूर्ण क्रू — डायरेक्टर, कैमरा टीम, लाइटिंग, साउंड, एक्टर, आर्ट डिपार्टमेंट — बाहर से लाती हैं। ये यूनिट्स केवल कुछ दिन शूटिंग कर लौट जाती हैं।
सब्सिडी में मिलने वाली राशि का मैक्सिमम हिस्सा crew members के wages के रूप में राज्य से बाहर चला जाता है, जिसे 'सिस्टमेटिक कैपिटल आउटफ्लो' कहा जा सकता है।
स्थानीय युवाओं को सिर्फ 'लो-स्किल' नौकरियाँ मिलती हैं — जैसे जूनियर आर्टिस्ट, मजदूर, ट्रांसपोर्ट या होटल स्टाफ।
उत्तर प्रदेश में उनका वास्तविक खर्च सिर्फ होटल, ट्रांसपोर्ट और मजदूरी तक सीमित रहता है —
📉 कोई मल्टीप्लायर इफ़ेक्ट नहीं
न तो स्थानीय फैशन - टेक्सटाइल, पोस्ट-प्रोडक्शन, सेट डिजाइन या टेक्निकल सप्लाई चेन विकसित होती है।
न कोई लॉन्ग टर्म टैक्स रिटर्न आता है, न टिकाऊ निवेश — केवल अस्थायी आंशिक रोजगार मिलता है।
सरकारी निवेश (Public Expenditure) पर रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (ROI) लगभग नगण्य है।
🎭 प्रचार बनाम जमीनी सच्चाई -
हर फिल्म की शूटिंग को राज्य सरकार "उपलब्धि" की तरह पेश करती है — प्रेस कॉन्फ्रेंस, इवेंट और मीडिया कवरेज के माध्यम से।
समाचार चैनलों पर सुर्खियाँ बनती हैं: "उत्तर प्रदेश बना नया फिल्म हब", लेकिन न कोई स्थायी ढांचा बनता है, न इंडस्ट्री का मूल इकोसिस्टम।
🎬 फिल्म निर्माण के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का स्थान: 2024
| इंडस्ट्री | केंद्र | फिल्में/वर्ष | प्रोडक्शन रैंक | विशेषताएँ |
|---|---|---|---|---|
| टॉलीवुड (तेलुगु) | हैदराबाद | 250-300 | 🥇 1 | ₹100-500Cr बजट, VFX हब, तकनीकी उत्कृष्टता |
| बॉलीवुड (हिंदी) | मुंबई | 200-250 | 🥈 2 | पैन-इंडिया अपील, बड़े स्टार्स, उच्च बजट |
| कॉलीवुड (तमिल) | चेन्नई | 180-220 | 🥉 3 | सामाजिक मुद्दों पर गहन कथाएँ, तकनीकी रूप से उन्नत |
| सैंडलवुड (कन्नड़) | बेंगलुरु | 100-120 | 4️⃣ | कलात्मक और व्यावसायिक फिल्मों का संतुलन |
| मोल्लीवुड (मलयालम) | केरल | 80-100 | 5️⃣ | यथार्थवादी कथानक, उच्च गुणवत्ता वाली फिल्में |
| बंगाली | कोलकाता | 80-100 | 7️⃣ | साहित्यिक अनुकूलन, कलात्मक फिल्मों का गढ़ |
| भोजपुरी (मुंबई आधारित) | मुंबई | 60-90 | 6️⃣ | हाई-कॉमर्शियल, संगीत-केंद्रित, बड़े सितारे |
| भोजपुरी (यूपी आधारित) | वाराणसी/गोरखपुर | 40-60 | - | स्थानीय कथाएँ, कम बजट, देसी अपील |
| भोजपुरी (बिहार/झारखंड) | पटना/रांची | 10-15 | - | स्वतंत्र फिल्में, सामाजिक विषयों पर केंद्रित |
भोजपुरी सिनेमा का वार्षिक परिदृश्य (2024)
| क्षेत्र | वार्षिक फिल्में | प्रोडक्शन केंद्र | विशेषताएँ | स्रोत |
|---|---|---|---|---|
| यूपी आधारित भोजपुरी सिनेमा | 40–60 | वाराणसी, गोरखपुर, बलिया, आज़मगढ़ | देसी पृष्ठभूमि, पूर्वांचली संस्कृति, कम बजट निर्माण | भोजपुरी फिल्म एसोसिएशन रिपोर्ट 2024 |
| मुंबई आधारित भोजपुरी सिनेमा | 60–90 | मुंबई (अंधेरी, गोरेगांव) | हाई-बजट, स्टार पावर, यूट्यूब/OTT फोकस | बॉलीवुड हंगामा रिपोर्ट |
| अन्य क्षेत्र (बिहार, झारखंड) | 10–15 | पटना, रांची | सामाजिक विषयों पर केन्द्रित, डिजिटल रिलीज | पटना फिल्म चैम्बर डेटा |
| कुल योग | 110–165 | - | औसतन 12-15 फिल्में/माह | भारतीय फिल्म उद्योग रिपोर्ट 2024 |
उत्तर प्रदेश में फिल्म निर्माण: स्थिति, सवाल और संभावनाएँ
उत्तर प्रदेश में बनने वाली हिंदी और भोजपुरी फिल्मों की संख्या, गुणवत्ता और प्रभाव, तीनों ही मापदंडों पर अभी भी राष्ट्रीय स्तर पर बेहद कमजोर हैं, यह केवल एक सांस्कृतिक विफलता नहीं, बल्कि राज्य के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए भी एक गंभीर चिंता का विषय है।
सवाल जो उठते हैं-
"हिंदी भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, भारत की 70 करोड़ से अधिक हिंदी भाषी आबादी में सबसे बड़ा योगदान उत्तर प्रदेश का है। --- यहाँ की बोली-वाणी, लोकसंस्कृति, सामाजिक गहराई, और संवेदना ने हिंदी फिल्मों को न सिर्फ भाषा दी, बल्कि आत्मा भी दी है। फिर भी हिंदी सिनेमा का केंद्र महाराष्ट्र (मुंबई) क्यों है, उत्तर प्रदेश क्यों नहीं?
क्या उत्तर प्रदेश बन सकता है फिल्म उद्योग का केंद्र?
अगर उत्तर प्रदेश सरकार ईमानदार नीति, स्थानीय प्रतिभाओं को प्राथमिकता, और सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी दृष्टि अपनाए, तो यह प्रदेश केवल उत्कृष्ट फिल्मों का निर्माण स्थल ही नहीं, बल्कि भारत के फिल्म उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र बन सकता है।
नोएडा फिल्म सिटी: उत्तर प्रदेश सरकार का अगला सपना, प्रयोग या प्रचार?
वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार, नोएडा के सेक्टर 21 में, यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) क्षेत्र में लगभग 1,000 एकड़ भूमि पर एक अत्याधुनिक फिल्म सिटी विकसित कर रही है, जिसमें लगभग 10,000 करोड़ रुपये तक के निवेश का प्रस्ताव है।
इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य प्रदेश को वैश्विक फिल्म निर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना है, जहाँ न केवल अंतरराष्ट्रीय मानकों की सुविधाएं उपलब्ध होंगी, बल्कि स्थानीय कलाकारों, तकनीकी पेशेवरों और रचनात्मक प्रतिभाओं को भी पर्याप्त अवसर मिल सकें।
इस परियोजना के लिए भूमि आवंटन की प्रक्रिया, मास्टर प्लान और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार की जा चुकी है, और निजी कंपनियों के साथ निवेश के लिए बातचीत चल रही है, जिसमें कई बड़े कॉर्पोरेट समूहों ने रुचि दिखाई है। निर्माण कार्य शुरू करने के लिए प्रशासनिक मंजूरियों और बुनियादी ढांचे के विकास की दिशा में तेजी से कार्य हो रहा है।
क्या इतिहास खुद को दुहराने जा रहा है ? : नोएडा सेक्टर 16-A की फिल्म सिटी की कहानी-
नोएडा की प्रस्तावित फिल्म सिटी को समझने के लिए यह ज़रूरी है कि हम सेक्टर 16 A की विफलता को याद करें --- क्योंकि वही खामियाँ आज फिर से, और कहीं अधिक बड़े पैमाने पर दोहराई जा रही हैं।
1988-90 में उत्तर प्रदेश सरकार ने नोएडा के सेक्टर 16 A में एक विश्वस्तरीय फिल्म निर्माण केंद्र बनाने की योजना शुरू की थी, जिसमें शूटिंग फ्लोर, पोस्ट-प्रोडक्शन स्टूडियो और कलाकारों के लिए आवासीय सुविधाएँ प्रस्तावित थीं, लेकिन यह परियोजना अपने मूल उद्देश्य से पूरी तरह भटक गई।
आज यह क्षेत्र न्यूज रूम, एडवरटाइजिंग एजेंसियों और कॉर्पोरेट ऑफिसों से भरा पड़ा है। NDTV, Zee News, ABP News, Aaj Tak, TV9 Bharatvarsh, Network18 और India TV जैसे प्रमुख मीडिया हाउसों ने यहाँ अपने मुख्यालय या प्रमुख स्टूडियो स्थापित किए हैं। फिल्म निर्माण के बजाय मीडिया कंपनियों और बिल्डरों को ही इसका लाभ मिला है। यह सरकारी योजनाओं की खोखली महत्वाकांक्षाओं का उदाहरण बन चुका है, जहाँ सिनेमाई सपनों की जगह प्राइमटाइम डिबेट्स और कॉर्पोरेट प्रेजेंटेशन्स की गूँज सुनाई देती है।
वर्तमान नोएडा फिल्म सिटी का सच-
नोएडा की प्रस्तावित फिल्म सिटी, सिनेमा के नाम पर रचा गया एक ऐसा स्वप्न है, जिसमें रचनात्मकता नहीं, बल्कि रियल एस्टेट की चमक है।
फिल्म सिटी जैसी परियोजनाओं का उद्देश्य किसी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और रचनात्मकता को मजबूती देना होता है। लेकिन उत्तर प्रदेश में यह परियोजना शुरू से ही नीति और नियत की विकृति का शिकार रही है। यहाँ फिल्म निर्माण को एक उद्योग के रूप में विकसित करने के बजाय इसे राजनीतिक प्रचार, भूमि व्यापार और बिल्डर लॉबी की लॉजिक में ढाल दिया गया है। कलाकारों, निर्देशकों, तकनीशियनों और पटकथा लेखकों की ज़रूरतें और उनके भविष्य की योजनाएँ इस मॉडल में कहीं फिट नहीं बैठतीं।
जब तक नीतियाँ कला और सृजन की जगह मुनाफे और मोल-भाव को प्राथमिकता देती रहेंगी, तब तक यह योजना केवल सत्ता और पूंजी का खेल बनी रहेगी --- जिसमें न कलाकार को जगह मिलेगी, न कहानी को।
लेखक की टिप्पणी:
उत्तर प्रदेश सरकार की फिल्म सिटी योजना सतही तौर पर प्रभावशाली लगती है, परंतु इसकी मूल अवधारणा में गंभीर खामियाँ हैं। अगर इस परियोजना का उद्देश्य वास्तव में प्रदेश को वैश्विक फिल्म निर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना - और स्थानीय कलाकारों, तकनीकी पेशेवरों तथा रचनात्मक प्रतिभाओं को पर्याप्त अवसर देना है --- तो यह योजना वर्तमान स्वरूप में केवल एक दिवास्वप्न है।
ऐसी सभी योजनाएं अभी तक स्थानीय प्रतिभाओं को सशक्त करने में विफल रही हैं। आगे भी जब तक नीति निर्माता फिल्म निर्माण की मूलभूत आवश्यकताओं --- आर्थिक प्रवाह, सृजनात्मक स्वतंत्रता, प्रतिभा का विकास और स्वस्थ कार्य संस्कृति जैसे विषयों को नहीं समझेंगे, तब तक ऐसी सभी योजनाएं और परियोजनाएं केवल दिखावटी ढांचा बनी रहेंगी।
📌 The Wide Angle का निष्कर्ष:
उत्तर प्रदेश में फिल्म नीति केवल एक विकास परियोजना नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान का अवसर है। यदि आज हम इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाते, तो कल भी वही गलतियाँ दोहराई जाएँगी, जो दशकों से हमें पीछे धकेलती आई हैं।
हमें ज़रूरत है एक ऐसी फिल्म नीति की, जो केवल इंफ्रास्ट्रक्चर या निवेश तक सीमित न होकर --- सृजनात्मकता, स्थानीय प्रतिभाओं और सांस्कृतिक पहचान को केंद्र में रखे।
📢 The Wide Angle की अपील: नीति से ज़मीन तक
The Wide Angle केवल सुझाव देने तक सीमित नहीं है --- हम इसे ज़मीनी हकीकत में बदलने के लिए व्यापक शोध, प्रयोगात्मक मॉडल और प्रमाणित रोडमैप के साथ प्रतिबद्ध हैं।
हम प्रशासन, मुख्यमंत्री कार्यालय और सभी जिम्मेदार राजनीतिक पक्षों से अपील करते हैं:
👉 यदि आप चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश फिल्म निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर और नेतृत्वकारी भूमिका निभाए --- तो The Wide Angle से सम्पर्क करें।
हमारे पास एक ठोस विज़न, विश्वसनीय आंकड़े और व्यवहारिक कार्ययोजना है --- जो न सिर्फ रोजगार और निवेश बढ़ा सकती है, बल्कि प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचा सकती है।
🤝 आइए, मिलकर एक ऐसा मंच तैयार करें, जहाँ हर कहानी को आवाज़ मिले, हर कलाकार को अवसर मिले, और उत्तर प्रदेश भारतीय सिनेमा की आत्मा के रूप में उभरे।
सम्पर्क : admin@thewideangle.in

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